Saturday 12 November 2016

Exploring Himachal - Manali ki Manoram Sair - Part I



अरसे बाद भ्रमण का अवसर मिला इस बार मई के महीने में और बैंक के आखिरी तिमाही  की टारगेट और अचीवमेंट के उठापटक के बाद इससे अच्छा मौका शायद नहीं मिल सकता था दिलोदिमाग को तरोताजा करने के लिए। दूसरी तरफ पटना में मई की प्रचंड गर्मी भी शरीर को झुलसा देने के जतन में जुट गयी थी। ऐसे में पहाड़ों की ओर रुख करने के अलावा अन्य कोई भी विचार मन को नहीं सूझा और इस तरह मैंने और श्रीमती जी ने हिमालय की हसीं वादियों का लुत्फ़ उठाने का प्लान बनाया। अरुणाचल को छोड़कर पूर्वी हिमालय में बसे सारे पर्वतीय रमणीक स्थलों पर समय बिताने का अवसर मुझे प्राप्त हो चुका है इसीलिये जो विकल्प मेरे जेहन में उभर कर आये, वो थे हिमाचल प्रदेश व उत्तराखंड।

ऑफिस के काम से एक बार शिमला जाना हुआ था पर घूमने का ज्यादा मौका नहीं मिल पाया था और जब श्रीमती जी ने भी शिमला और मनाली जाने की इच्छा प्रकट की  तो हमने इस बार देव भूमि हिमाचल प्रदेश को एक्स्प्लोर करने का मन बना लिया। यूँ तो हिमाचल का हरेक हिस्सा (चाहे वो धर्मशाला हो या फिर मैकलॉयडगंज, केलोंग हो या फिर किन्नौर)  एक से बढ़ कर एक है और अपने आप में एक टूरिस्ट स्पॉट है पर हमने इस बार के ट्रिप में कुल्लू, मनाली एवं शिमला को शामिल किया। मनाली जाने के क्रम में चंडीगढ़ में भी एक रात बिताने की योजना थी।

सफर की सारी तैयारियों के बाद मई के दूसरे हफ्ते में हमलोग अपने गन्तव्य की ओर निकल पड़े। राजधानी एक्सप्रेस से पटना  से दिल्ली तक का रात भर का सफर काफी आरामदायक रहा और ट्रेन अपनी ख्याति के अनुरूप बिलकुल सही समय पर नयी दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुँच चुकी थी।  यूँ तो मनाली के लिए दिल्ली से भी डायरेक्ट बस सेवा उपलब्ध है पर १२ घंटों  से भी ज्यादा बस के लगातार सफर का आईडिया हमें कुछ जमा नहीं। कुछ तो पहाड़ी रास्तों की उबड़-खाबड़  और कुछ हरियाना रोडवेज के चालकों की सिद्धहस्तता के बारे में सुन रखी कहानियों ने मुझे भयाक्रांत कर दिया था।  तय ये हुआ कि दिल्ली से चंडीगढ़ बस से पहुँचा जाये और फिर वहीं रात बिता कर अगली सुबह चंडीगढ़ से मनाली और शिमला का सफर टैक्सी से किया जाये। प्लान  के मुताबिक़ हमने दिल्ली से चंडीगढ़ केलिए वॉल्वो बस की टिकटें हरियाना रोडवेज की वेबसाइट (http://hartrans.gov.in/ors/) से ऑनलाइन बुक कर रखी थी और  चंडीगढ़ से आगे के पूरे सफर केलिए टैक्सी भी बुक कर लिया था।

दिल्ली के आईएसबीटी बस अड्डे से सुबह १०:२० बजे की बस से हमलोग चंडीगढ़ चल पड़े थे। दिल्ली-चंडीगढ़ उच्चमार्ग जिसे भारत की सबसे बेहतरीन सड़कों में एक माना जा सकता है, पर हमारी बस पानीपत और करनाल के रास्ते सरपट दौड़ लगा रही थी। करीब दो घंटे के सफर के बाद हमारी बस करनाल में एक रेस्तरां के पास 15 - 20 मिनट तक रुकी। रेस्तरां से थोड़ी ही दूर पर हमें एक सुन्दर सी झील दिखी और झील की तरफ हमारे कदम खुद- बखुद बढ़ गए।

करना झील 
लंबे सफर के बाद झील के पास थोड़ा समय बिताना एक सुखद एहसास था और हमलोग झील की खूबसूरती को निहारने में इतने मशरूफ हो गए थे कि बस के हॉर्न की आवाज़ भी सुनाई नहीं पड़ रही थी। आखिरकार बस कंडक्टर की तेज आवाज़ से हमें अचानक महसूस हुआ कि हमलोग अल्प विराम के लिए यहाँ रुके थे और अच्छा खासा वक़्त बीत चुका है। भागते हुए हमलोग बस में चढ़े और कंडक्टर ने हमें जब घूर के देखा तो पता चला बाकी सारे लोग बस में बैठ चुके थे और केवल हमदोनों के इंतज़ार में बस रुकी थी।

करीब २ बजे तक हमलोग अम्बाला और जिरकपुर होते हुए चंडीगढ़ पहुँच चुके थे। चंडीगढ़ के बारे में जैसा सुन रखा था, हू-बहू वैसा ही पाया - सुनियोजित, सुन्दर और शालीन। मोहाली के बाद जब सड़कें और ज्यादा चौड़ी और सुन्दर हो जाती हैं और गाड़ियाँ अनुशासित हो चलने लगती हैं तो यह समझते देर नहीं लगती कि आप चंडीगढ़ में प्रवेश कर चुके हैं।
Image courtesy: yourstory.com

शहर पहुँचने के बाद हमलोग मनिमाजरा स्थित गेस्टहॉउस चले गए।  हमारे पास चंडीगढ़ घूमने के लिए शाम तक का समय था , क्योंकि अगली सुबह हमें मनाली की ओर जो कूच करना था।

मनाली के बारे में विस्तार से अगले अंक में बताने का प्रयास होगा।  तब तक के लिए अलविदा।