Monday, 29 December 2014

A day in Gangtok : The Queen of Eastern Himalayas



सिक्किम प्रवास की अब तक की कड़ियों में आप दक्षिण सिक्किम के नामची एवं रावंगला, पश्चिम सिक्किम के युकसम, राबदंतसे एवं पेलिंग तथा पूर्व सिक्किम के नाथुला दर्रा एवं छांगू झील से रूबरू हो चुके हैं। उत्तर सिक्किम  के अलौकिक नजारों को आपके समक्ष प्रस्तुत करने से पहले ये ख्याल आया कि क्यूँ ना गान्तोक के बारे में कुछ लिखा जाए। आख़िरकार सिक्किम की राजधानी होने के अलावा हिल स्टेशन के रूप में भी इसकी अपनी पहचान है। परंपरा एवं आधुनिकता के अद्भुत सम्मिश्रण वाला यह शहर कई कारणों से पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। एक चीज जो गान्तोक को अन्य पर्यटन केन्द्रों से अलग साबित करती है, वो है यहाँ की स्वच्छता। 5500 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित यह शहर सिक्किम के अन्य क्षेत्रों के भ्रमण के लिए आधार का काम करता है। पर्यटक गान्तोक को अस्थायी ठिकाना बनाकर अमूमन उत्तर सिक्किम और नाथुला दर्रे की यात्रा करते हैं। फिर भी हरेक पर्यटक के यात्रा कार्यक्रम का एक दिन तो गान्तोक के नाम होता ही है। तो आज आपको लिए चलता हूँ गान्तोक की सैर पर जहाँ महात्मा गाँधी मार्ग और होटलों में समय बिताने के अलावा भी बहुत कुछ है करने और देखने को। 

ताशी व्यू पॉइंट (Tashi View Point)

गान्तोक घूमना हो तो सबसे पहले आपको गान्तोक से मात्र 5 किमी दूर ताशी व्यू पॉइंट का रुख करना होगा, क्यूंकि सुबह जितनी जल्दी आप वहाँ पहुँचेंगे, कंचनजंघा की दुग्ध धवल चोटियों को सूर्योदय की रौशनी में नहाते देखने की सम्भावना उतनी ही ज्यादा होगी। यकीन मानिए,  सुबह का यह अद्भुत नजारा आपके पूरे दिन को खुशनुमा बना देगा।  

ताशी व्यू पॉइंट से कंचनजंघा का मनोरम दृश्य  (Panoramic Mt. Khangchendzonga as seen from Tashi View Point)

गणेश टोक एवं इंचे मोनेस्ट्री 

सुबह सुबह ऐसा रमणीक दृश्य देखने के बाद अगर पास में ही मंदिर भी हो तो कौन नहीं जाना चाहेगा भला और गणेश टोक है भी प्रसिद्ध मंदिर। करीब 6500 फ़ीट की ऊँचाई पर स्थित यह मंदिर गान्तोक से 7 किमी दूर है और मंदिर होने के साथ ही बहुत अच्छा व्यू पॉइंट भी है। यहाँ से गान्तोक शहर का विहंगम दृश्य (Bird's eye view) देखने को मिलता है, खास तौर पे रात्रि में रौशनी में जगमगाता शहर काफी सुन्दर दिखता है। 


गणेश टोक से गान्तोक शहर का दृश्य (View of Gangtok City from Ganesh Tok)

गणेश टोक से थोड़ी ही दूर लगभग 200 साल पुराना प्रसिद्ध इंचे मोनेस्ट्री है जो सिक्किम के बौद्ध सर्किट का एक अहम हिस्सा है। आप वहाँ भी थोड़ा समय बिता सकते हैं। 
इंचे मोनेस्ट्री (Enchey Monastery)

गणेश टोक के बिलकुल सामने चिड़ियाघर है जिसे बुलबुले जूलॉजिकल पार्क के नाम से जानते हैं। इसका खास आकर्षण है - रेड पांडा, जो सिक्किम का राजकीय पशु है। समय की कमी हो तो पार्क जाना टाला जा सकता है। खैर, आपको रेड पांडा तो दिखला ही दें। 
Red Panda in Gangtok Zoo

चलिए, अभी तो बहुत कुछ देखना बाकी है। चलते हैं एक और मंदिर की ओर। 

हनुमान टोक 

गणेश टोक से 2-3 किमी आगे हनुमान जी का एक मंदिर है जिसका संरक्षण भारतीय सेना करती है। इस मंदिर से एक किंवदंती यह जुड़ी है कि जब हनुमान भगवान राम के भ्राता लक्ष्मण की प्राणरक्षा हेतु हिमालय से संजीवनी ले कर लौट  रहे थे तो उन्होंने इसी जगह पर विश्राम किया था। मंदिर पर्यटकों के बीच बहुत लोकप्रिय है। अगर आप गान्तोक में हैं तो हनुमान जी के दर्शन अवश्य कर लें। अगर आपका भाग्य और मौसम दोनों अच्छे हों तो 7200 फ़ीट की ऊंचाई पर बने इस मंदिर से कंचनजंघा का शानदार दृश्य देखा जा सकता है। 
हनुमान टोक (Hanumaan Tok)

हनुमान टोक से गान्तोक लौटते समय रास्ते में बाख्तांग वाटरफॉल दिखाई पड़ता है जहाँ आप कुछ पल बिता सकते हैं। बरसात के मौसम में वाटरफॉल की रौनक देखते ही बनती है। 
बाखतांग वाटरफॉल (Bakhtang Waterfall)

 सरमसा गार्डेन, रानीपूल 
गान्तोक से 14 किमी दूर सरमसा गार्डेन काफी बड़े क्षेत्र में फैला है और स्थानीय लोगों के लिए पिकनिक का प्रमुख केंद्र है। 1922 ई. में निर्मित इस उद्यान में वर्ष 2008 से इंटरनेशनल फ्लावर शो आयोजित किया जा रहा है। सामान्यतः फरवरी माह में आयोजित इस शो के समय पूरा उद्यान रंग -बिरंगे फूलों से शोभायमान रहता है। (यह भी पढ़ें - A day in nature's own garden - Flowers of Sikkim ) इसके अलावा भी यह उद्यान कई बड़े कार्यक्रमों की मेजबानी करता रहा है। 

सरमसा उद्यान (Saramsa Garden)

इस उद्यान की एक और खासियत है - बाँस के मोटे मोटे पेड़ और औषधीय गुणों वाले अनेक पौधे। उद्यान में थोड़ा समय बिताया जा सकता है।
सरमसा उद्यान में बांस के पेड़ (Bamboo Trees at Saramsa Garden)

रूमटेक मोनेस्ट्री 
सरमसा से करीब 18 किमी दूर ( गान्तोक से 24 किमी) 1717 ई. में स्थापित यह बौद्ध मठ बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए आस्था का बहुत बड़ा केंद्र होने के साथ ही एक महत्वपूर्ण पर्यटन केंद्र है। सोलहवें करमापा रांगजुंग रिगपे दोरजे ने 1970 के दशक में इस मठ का जीर्णोद्धार कर इसे अपना आसन बनाया , तब से इसे सिक्किम के बौद्ध सर्किट का सबसे अहम हिस्सा माना जाता है। धर्मचक्र केंद्र के नाम से भी प्रचलित इस मठ की सुरक्षा भारतीय सेना के हाथों है।  
रूमटेक मोनेस्ट्री (Rumtek Monastery)

बनजाखरी वाटरफॉल 

रूमटेक मोनेस्ट्री से वापस रानीपूल की तरफ आते समय एक और सड़क रे मिन्दु गाँव से होते हुए बनजाखरी वाटरफॉल की ओर चली जाती है। अच्छी बात यह है कि आप इसी सड़क से बनजाखरी वाटरफॉल देखते हुए गान्तोक वापस लौट सकते हैं। इस सड़क पर चलते हुए आपको सामने वाले पहाड़ पर बसा पूरा गान्तोक शहर दिखाई देता है। वाटरफॉल से पहले ही एक और बौद्ध मठ है - रांका मोनेस्ट्री , जो रूमटेक से अपेक्षाकृत छोटा है। कंचनजंघा मनोरंजन पार्क (Amusement Park) भी है  जहाँ बच्चों के साथ फुरसत के कुछ पल बिताये जा सकते हैं। चलते हैं बनजाखरी वाटरफॉल, जहाँ झरने की कलकल ध्वनि के साथ एक कहानी भी आपका इंतजार कर रही है। वाटरफॉल के आस पास जाखरी जनजाति के लोगों के विभिन्न मुद्राओं में कई मूर्तियां हैं, जो उनके आदिम काल के जीवन को दर्शाती हैं। यदि आपने गान्तोक में कई रातें बितायी हैं तो संभव है आप जाखरी आदिवासियों के बारे में जानते हों। ये लोग गान्तोक की गलियों में देर रात कोई डरावनी ध्वनि वाला वाद्य यन्त्र बजाते हुए और अपनी अजीब सी भाषा में गाते हुए निकलते हैं। आप चाहे, कितनी भी गहरी नींद में हों, ऐसी  बेसुरी और भयानक आवाज़ से आपका जागना तय है। स्थानीय लोग तो बताते हैं कि ये लोग आदमियों के पैर की हड्डी से बने वाद्ययंत्र बजाते हैं। गान्तोक प्रवास के दौरान मैंने भी यह कई बार अनुभव किया है।

बनजाखरी वाटरफॉल (Banjakhri Waterfall)

जाखरी आदिवासियों की मूर्तियाँ (Statue of Jakhri Tribals)
वाटरफॉल से गान्तोक केवल 4 किमी की दूरी पर है, इसीलिए आप वॉटरफॉल और इसके आस-पास की सुंदरता को आराम से निहार कर वापस गान्तोक लौट सकते हैं।
ताशिलिंग से देवराली तक रोप वे पर चलने वाला केबल कार भी गान्तोक के प्रमुख आकर्षणों में से एक है। रोप वे से गान्तोक की सुरम्य वादियों का विहंगम दृश्य दिखता है। पर रोप वे सेवा शाम के 4:30 बजे तक ही उपलब्ध है।
Rope way in Gangtok
गर दिन भर की सारी थकान उतारनी हो तो एम जी मार्ग से अच्छी जगह हो ही नहीं सकती। एम जी मार्ग पर टहलते हुए या फिर सड़क के बीच लगे बेंच पर बैठ कर बिताया हुआ कुछ ही समय आपको अगले दिन के सफर के लिए तरोताजा कर सकता है। यहाँ पहली बार आने पर मुझे ऐसा लगा कि क्या मैं वाकई भारत में हूँ। मुझे यकीन है कि आपको भी ऐसा ही महसूस हुआ होगा।
एम जी मार्ग, गान्तोक (M G Road, Gangtok)
गान्तोक कैसे पहुँचें ?

रेल द्वारा : गान्तोक का निकटतम रेलवे स्टेशन है - न्यू जलपाईगुड़ी  जो गान्तोक से 120 किमी दूर है। टैक्सी से गान्तोक जाने में तकरीबन 4 घंटे लगते हैं।

हवाई जहाज द्वारा :  गान्तोक का निकटतम हवाई अड्डा बागडोगरा है जो गान्तोक से 125 किमी दूर है। हवाई अड्डे पर टैक्सी उपलब्ध हो जाता है, अन्यथा वहाँ से सिलीगुड़ी बस स्टैंड आना पड़ता है। बागडोगरा से गान्तोक जाने में तकरीबन 4 घंटे लगते हैं।

अगर आपको मेरा ब्लॉग पसंद है तो आप अपने सुझाव व प्रतिक्रियाएं मेरे ब्लॉगपोस्ट या मेरे फेसबुक ब्लॉग पेज ज़िन्दगी एक सफर है सुहाना पर भी  सकते हैं। 




Thursday, 25 December 2014

A day in Nature's own garden : Flowers of Sikkim



As Ralph Waldo Emerson says, Flowers are a proud assertion that a ray of beauty outvalues all the utilities of the world. Beholding the beauty of one flower can make you oblivious of your problems and sorrows and uplift your mood for some time, then one can imagine, how long-lasting effect a whole valley of flowers may have on the mind of the mankind. Henry Beecher has rightly said that Flowers are the sweetest things God ever made, and forgot to put a soul into. In this backdrop, i would like to take my readers on the floral tour of Sikkim, the abode of rare orchids and primulas. Hope, you will enjoy as much i enjoyed watching these eye-soothing blossoms.

I wandered lonely as a cloud
That floats on high o'er vales and hills,
When all at once I saw a crowd,
A host, of golden daffodils;
Beside the lake, beneath the trees,
Fluttering and dancing in the breeze
Continuous as the stars that shine
And twinkle on the milky way,
They stretched in never-ending line
Along the margin of a bay:
Ten thousand saw I at a glance,
Tossing their heads in sprightly dance.

                      ~William Wordsworth, "I Wandered Lonely as a Cloud," 1804
As you may be knowing, Sikkim is situated in ecological hot-spot of lower Himalayas, one of the only three such eco-regions in India. Owing to it's high altitudinal variation ranging from 1000 feet to 28000 feet, it is one of the few regions to exhibit such bio-diversity with in such a small area. Sikkim has been long known for it's rich flora and fauna. The hill station is not only famous for it's breath-taking and magnificent landscapes, but also for it's flowering plant varieties. To be precise, the hilly state is home to around 5000 species of flowering plants, 500 rare orchids and 36 Rhododendron species. 

It is hard to believe that you visit Sikkim and the flowers of Sikkim don't catch your fancy. The forests of orchids, primulas, magnolia, blue poppies and gladioli make a spell-binding floral spectacle and the large variety of Rhododendrons sets the hilly terrain ablaze in a riot of colours. 
Now, I will let the flowers do the rest of the talking:



















And the last but not the least, The Rhododendron, the State Tree of Sikkim in it's full glory.


These flowers definitely adds to the beauty of  the picturesque Sikkim. One can visit the state even for the purpose of exploring it's rich bio-diversity. For those interested in spending time with flowers, flower show is hosted on regular basis near white house in Gangtok. Sikkim has also been hosting International Flower Show during the month of February for the last two years.


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Monday, 22 December 2014

पश्चिम सिक्किम : जहाँ बिखरे हैं सिक्किम के इतिहास के पन्ने! (West Sikkim: Closest Neighbour of Mt. Kanchendzonga)



पिछले पोस्ट में आपने दक्षिण सिक्किम के दो पर्यटन केन्द्रों नामची और रावंगला का यात्रा वृत्तांत पढ़ा। सिक्किम प्रवास की अगली कड़ी में अब आपको लिए चलता हूँ हिमालय की गोद में बसे इस खूबसूरत राज्य के एक और रोमांचक सफर पे - पश्चिम सिक्किम, जो न केवल भरपूर प्राकृतिक सुंदरता से नवाज़ा गया है, वरन प्राचीन सिक्किम की राजशाही का केंद्रबिंदु भी रहा है। प्राचीन सिक्किम की दो राजधानियाँ युकसम एवं राबदान्तसे भी पश्चिम सिक्किम में हैं। पेलिंग, जहाँ से न जाने कितने लोग कंचनजंघा की चोटियों का नजदीक से दीदार करने आते हैं, और पवित्र खेचुपरी झील भी यहीं है। दुनिया के स्वच्छतम गाँवों में से एक दाराप भी तो पश्चिम सिक्किम में ही है। 
अमूमन सिक्किम आने वाले पर्यटकों के यात्रा कार्यक्रम में पश्चिम सिक्किम पीछे रह जाता है, क्यूंकि अधिकांश लोग पूर्व और उत्तर सिक्किम के हिमाच्छादित रास्तों, पहाड़ों और झीलों के नयनाभिराम दृश्यों को अधिक पसंद करते हैं। पर घुमक्कड़ी के शौक़ीन और नयी मंजिल और नया रास्ता तलाशते यात्रियों के लिए पश्चिम सिक्किम किसी परिचय का मोहताज नहीं। तो चलिए मेरे साथ एक और सफर पे रूबरू होने सिक्किम के अतीत से और उस नैसर्गिक प्राकृतिक छटा से, जिसे सिक्किम का पर्याय माना जा सकता है। 
 चूँकि मैं गान्तोक में ही पोस्टेड था, इसलिए सिक्किम के हरेक हिस्से का सफर भी वहीँ से किया है। वैसे भी सिक्किम भ्रमण के लिए अधिकतर पर्यटक गान्तोक को ही बेस बनाते हैं। हालाँकि गेजिंग, जो पश्चिम सिक्किम का मुख्यालय है, गान्तोक और न्यू जलपाईगुड़ी दोनों जगहों से समान दूरी (130 किमी ) पर है। न्यू जलपाईगुड़ी से वाया जोरथांग, गेजिंग का सफर 4 से 5 घंटे में तय किया जा सकता है। 
अप्रैल की एक खुशनुमा सुबह, हम आठ लोग राबोंग के रास्ते से पश्चिम सिक्किम के अपने पहले पड़ाव युकसम की ओर चल पड़े। हम लोगों का इरादा पहले दिन युकसम से होते हुए खेचुपरी झील और फिर वहां से पेलिंग पहुँच कर होटल में रुकने का था। पर युकसम के पास पहुंचते ही मूसलाधार बारिश होने लगी और हम सब बारिश का आनंद लेने एक तिब्बती ढाबे के पास रुके। पहाड़ों में बारिश देखना भी एक यादगार लम्हा होता है और गान्तोक प्रवास के दौरान हमने इसका  जम के  लुत्फ़ उठाया था। मज़ा तो तब दूना हो जाता था, जब खिड़कियों से होते हुए घना कोहरा पूरे कमरे में भर जाता था  और ऐसा प्रतीत होता, जैसे बादलों के बीच पहुँच गए हों। युकसम में तेज बरसात के बीच ढाबे में लंच लेना भी एक अच्छा अनुभव था। घंटे भर की बरसात के बाद हम लोगों ने रात युकसम में ही बिताने का फैसला किया। वहां रुकने का एक कारण था कि खेचुपरी झील तक पहुँचने में अँधेरा हो जाता और हम झील की सुंदरता का आनंद लेने से वंचित रह जाते। युकसम में ज्यादा होटल नहीं हैं, पर हमें एक अच्छा सा होम स्टे मिल गया। 
युकसम के बारे में ये बता दूँ की इसे सिक्किम की पहली राजधानी होने का श्रेय प्राप्त है जिसे प्रथम चोग्याल शासक फुंत्सोग नामग्याल ने 1642 ई. में स्थापित किया था। 1642 ई. से लगभग 50 साल तक यह चोग्याल राजाओं की राजधानी रहा। युकसम का मतलब है - तीन लामाओं का मिलन स्थल। ये तीन लामा सिक्किम के प्रथम शासक का राज्याभिषेक करवाने आये थे। भूटिया जनजाति के लोग युकसम को पवित्र स्थल मानते हैं। 

युकसम में चोग्याल राजा का राज्याभिषेक स्थल (Norbugang Coronation Site at Yuksom)
युकसम की प्रसिद्धि की सिर्फ यही वजह नहीं है, बल्कि दो और भी वजहें हैं जो इसे खास बनाती हैं।  पहला ये कि यह मशहूर फिल्म अभिनेता डैनी डेन्जोंगपा की जन्मस्थली है और दूसरा ये कि ट्रेकिंग के शौकीनों के लिए युकसम से बेहतर शायद ही कोई जगह सिक्किम में हो। युकसम में दो ट्रेकिंग रूट हैं- एक युक्सम से जोंगरी जो लगभग 36 किमी लंबा है और दूसरा युकसम से गोइचा-ला जिसकी लम्बाई करीब 40 किमी है। जोंगरी जाने वाला रास्ता कंचनजंघा के बेस कैंप पे जाकर समाप्त होता है। इन दिनों विदेशी पर्यटक खासकर यूरोपियन और अमेरिकी देशों के लोग बहुत अधिक संख्या में युकसम आने लगे हैं। 
युकसम में सिक्किम का सबसे पुराना बौद्ध मठ है - दुबदी मठ (Dubdi Monastery) , जिसकी स्थापना 1701 ई. में की गयी थी। युकसम से इस मठ तक जाने के लिए पैदल 2 किमी चलना पड़ता है। कोरोनेशन साइट देखने के बाद हम सब दुबदी मठ की ओर ट्रेकिंग के लिए चल पड़े। शुरुआत तो सबने जोश के साथ की, पर चूँकि कुछ देर पहले ही जोरों की बारिश हुई थी, सो फिसलन भरे रास्ते पे चलना उतना आसान नहीं था। आधा सफर तय करने के बाद हमारे समूह के अधिकांश सदस्य थक कर वापस लौटते दिखाई दे रहे थे, केवल तीन लोग , जिसमें एक मैं भी था, मठ तक पहुँच पाये। मठ देखने से ज्यादा खुशी हमें वह दुर्गम यात्रा पूर्ण होने से हुई थी, क्यूंकि उस समय मठ नवीकरण कार्य (Renovation) हेतु बंद था।:-( 

वापस होम स्टे लौटने में हमें ज्यादा वक़्त नहीं लगा और हम सब अपने कमरों में चले गए। होम स्टे की खास बात यह थी कि यह पूरी तरह स्थानीय महिलाओं द्वारा संचालित था और शायद इसीलिए सब कुछ अधिक सुव्यवस्थित लग रहा था। वहां का भोजन भी काफी स्वादिष्ट था।  हो भी क्यों ना, सब्जियाँ भी तो उनके खुद के खेतों की थी - ताज़ी और आर्गेनिक। 
लिंगी होमस्टे, युकसम  (Lingee Homestay at Yuksom)
अगली सुबह आँखें खुलते ही सब सुबह के नजारों को कैमरे में कैद करने निकल पड़े और जो नजारा दिखा वो दिलो-दिमाग को तरोताजा कर देने वाला था। 
युकसम में एक शानदार सुबह (One fine morning in Yuksom)



युकसम से अलविदा कहने का समय हो चला था और हमलोग खेचुपरी झील के लिए रवाना हो गए। हम झील की तरफ बढ़ रहे थे की हमें पास  कहीं झरने की तेज होती आवाज़ सुनाई देने लगी और हमारे ड्राइवर ने बताया कि हम कंचनजंघा वाटरफॉल पहुँचने वाले हैं। शीघ्र ही वाटरफॉल हमारे सामने था। 

 कंचनजंघा वाटरफॉल (Khangchendzonga Waterfall)
  यह मेरा सिक्किम में देखा गया अब तक का सबसे बड़ा वॉटरफॉल था। युकसम से 5 किमी और पेलिंग से 28 किमी दूर यह वाटरफॉल पश्चिम सिक्किम के सबसे बड़े आकर्षणों में से एक है। प्रकृति की ऐसी कृतियों के निकट बिताये कुछ ही पल आपको ऐसे मोहपाश में बाँध लेते हैं कि उनसे मुँह मोड़ने का जी ही नहीं करता, परन्तु सिक्किम जैसे प्रदेश में, जहाँ प्रकृति की अनगिनत अनमोल कृतियाँ बिखरी पड़ी हैं, वहाँ आप किसी एक के प्रेम में बंध नहीं सकते, अन्यथा आप प्राकृतिक सुंदरता के कई अन्य आयामों को निहारने से वंचित रह जायेंगे।  कुछ ऐसी ही मनःस्थिति में हमलोग वाटरफॉल को पीछे छोड़ झील की तरफ बढ़ चले। करीब आधे घंटे बाद हम खेचुपरी झील पहुँच चुके थे। 


खेचुपरी झील (Khecheopalri Lake)

खेचुपरी झील में तैरती मछलियाँ  (Fishes swimming in Khecheopalri Lake)
इस झील को बौद्ध और हिन्दू दोनों अपने लिए पवित्र मानते हैं। दरअसल, इस झील से बहुत सी किंवदन्तियाँ जुड़ी हैं। ऐसी  मान्यता  है कि इस झील का आकार तारा देवी के पैर जैसा है तो कुछ इसे भगवान बुद्ध के पैर की आकृति बताते हैं। वास्तव में काफी ऊंचाई से झील को देखने पर यह पैर के निशान जैसा लगता है। ऐसी भी मान्यता है कि भगवान शिव इस झील के अंदर समाधि में लीन हैं। इस झील से जुड़ा एक रुचिकर तथ्य यह है कि हर ओर से ऊँचे पेड़ों से घिरे होने के बाद भी झील में एक भी पत्ता गिरा हुआ नहीं दीखता। झील की सतह पर पत्ते के गिरते ही पक्षी उसे झील से बाहर निकाल देते हैं। पत्ते तो मुझे भी नहीं दिखे झील में। 
झील के दर्शन कर हमलोग पेलिंग से होते हुए सिक्किम की दूसरी राजधानी राबदन्तसे के अवशेष (Rabdentse Ruins) देखने निकल गए।पेलिंग से 3 किमी दूर राबदन्तसे 1670 ई. से 1814 ई. तक सिक्किम की राजधानी रहा। 
राबदंतसे महल के अवशेष (Rabdentse Ruins)
  
तीन स्तूप (Three Chorten at Rabdentse)

महल के अवशेषों को देख कर ऐसा लगता है कि इसने कई आक्रान्ताओं के वार झेले हैं और आख़िरकार नेस्त -नाबूद हो चुका है। सच में , चोग्याल राजाओं का यह महल भारत के अन्य राजमहलों की तरह सारी घटनाओं का साक्षी रहा है - सत्ता के लिए संघर्ष, षडयंत्र, धोखा, विदेशी आक्रमण और न जाने क्या क्या ! दो सौतेले भाई-बहन की राजगद्दी की लड़ाई में कभी भुटानियों ने, कभी गोरखों ने और कभी तिब्बतियों ने सिक्किम पर हमला बोला। अन्ततः लगातार नेपाली और भूटानी हमलों के कारण राबदंतसे का विध्वंस हो गया। प्राचीन महल का पूरा परिसर अब भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण के संरक्षण में है। परिसर में तीन चोर्टेन (स्तूप ) हैं ,जहाँ राजपरिवार पूजा किया करता था। 
राबदंतसे की एक और खासियत आपको यहाँ आने को प्रेरित कर सकती है, वो है यहाँ के घने जंगलों में पाये जाने वाले पक्षियों की अनेक प्रजातियाँ। वन्यजीव प्रेमियों केलिए यह ख़ुशी की बात हो सकती है कि इस क्षेत्र को पक्षी अभयारण्य (Bird Sanctuary) के रूप में विकसित किया जा रहा है।  
राबदंतसे से थोड़ी ही दूर पेमायांग्त्से मोनेस्ट्री है जो सिक्किम के प्राचीनतम मठों में से एक है। बौद्ध धर्म के लोगों के लिए इसका विशेष धार्मिक महत्व है। 
पेमायांग्त्से मठ (Pemayangtse Monastery)
 सिक्किम के इतिहास के पन्नों को खंगालने के बाद हम सब सिंगशोर ब्रिज देखने गए जो देंताम और उत्तरे गाँवों को जोड़ता है। 220 मीटर ऊँचा और 198 मीटर लंबा यह ब्रिज एशिया का दूसरा सबसे ऊँचा झूला पुल (Suspension Bridge) है। सिक्किम ही नहीं, पूरे भारत में इस तरह का यह इकलौता पुल है। 
सिंगशोर ब्रिज (Singshore Bridge)
अब वक़्त हो चला था गान्तोक की ओर रुख करने का, सो हम वापस पेलिंग , गेजिंग और दराप के रास्ते गान्तोक चल पड़े।

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Saturday, 13 December 2014

South Sikkim : The cocktail of Nature, Spiritualism & Tourism!



पिछले पोस्ट में आपने पूर्वी सिक्किम में भारत- चीन सीमा के समीप अवस्थित नाथुला पास और छांगू झील का यात्रा वृत्तांत पढ़ा। सिक्किम प्रवास की अगली कड़ी में मैं अब दक्षिण सिक्किम के दो खूबसूरत पर्यटन केंद्र - नामची और रावंगला का यात्रा वृतांत आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ।

सिक्किम का वो हिस्सा जिसे प्रकृति ने जितना खूबसूरत बनाया है , उतना ही योगदान सिक्किम के लोगों ने उस सुंदरता को अक्षुण्ण बनाये रखने और उसे बढाने में किया है , वो बस एक ही है - दक्षिण सिक्किम।  दक्षिण सिक्किम, जिसका मुख्यालय नामची है, ना केवल अपने टेमी चाय के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि बौद्ध और हिन्दू धर्मावलम्बियों के लिए आध्यात्मिक पर्यटन का प्रमुख केंद्र भी है। नामची का निकटतम रेलवे स्टेशन है न्यू जलपाईगुड़ी और निकटतम हवाई अड्डा है बागडोगरा।  न्यू जलपाईगुड़ी और बागडोगरा से इसकी दूरी जहाँ लगभग 100  किमी है, वहीँ गान्तोक से 78 किमी। रावंगला और नामची की आपस में दूरी मात्र 25 किमी है। लब्बोलुआब यह कि अगर आप गान्तोक से दक्षिण सिक्किम के इन दो शहरों का भ्रमण करना चाहते हैं तो एक दिन में दोनों जगहों का आनंद ले कर वापस गान्तोक लौट सकते हैं। 

दक्षिण सिक्किम की एक खूबी यह भी है कि यह सिक्किम के दूसरे हिस्सों की तुलना में ज्यादा अभिगम्य (accessible) है। रास्ते काफी अच्छे हैं और गान्तोक से नामची की दूरी दो से ढाई घंटे में पूरी की जा सकती है। अब माननीय मुख्यमंत्री जी का गृहनगर होने का कुछ तो लाभ मिलेगा न ! नामची में हेलिपैड भी है और फुटबॉल स्टेडियम भी और जितना सरकारी प्रयास नामची को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने में हुआ जान पड़ता है , उतना अन्यत्र कहीं नहीं।   

हमारी घुमक्कड़ टोली ने भी दक्षिण सिक्किम घूमने का निर्णय किया और फिर एक दिन हम सब गान्तोक से अपने ड्राइवर के साथ चल पड़े  सिक्किम की सुंदरता के एक नए आयाम का समीप से अवलोकन करने। एक बार फिर हमारी गाड़ी जाने पहचाने रास्ते (NH-31A) पर चल पड़ी और घंटे - पौन  घंटे में हम सिंगताम से आगे निकल चुके थे। सिंगताम से एन एच -31 ए  को छोड़कर गाड़ी नामची के रास्ते पर बढ़ चली थी और सड़क किनारे लगे मील के पत्थर टेमी चाय बागान (सिक्किम का इकलौता चाय बागान ) के समीप होने का इशारा कर हम सबों की उत्सुकता बढ़ा रहे थे। मौसम भी खुशगवार था और रास्ते भी, मन में बस एक ही आशंका थी की कहीं हमारे टी गार्डेन पहुँचने तक कहीं कंचनजंघा की दुग्ध-धवल चोटियाँ बादलों की चादर न ओढ़ लें। क्यूंकि हमने कंचनजंघा की देदीप्यमान (magnificent) पृष्ठभूमि में टेमी टी गार्डेन की जो अप्रतिम तसवीरें देख रखी थी, उसी को साक्षात देखना चाहते थे। कुछ ही पलों में चाय के पौधे दिखने लगे थे और हम चाय बागान के बीच की घुमावदार सड़क पर बढ़ रहे थे। आख़िरकार हमारी गाड़ी टी गार्डेन  के गेस्ट हाउस के पास रुकी और आँखों के सामने जो नजारा था वो मन को मोह लेने वाला था। 
टेमी टी गार्डेन , दक्षिण सिक्किम (Temi Tea Garden, Namchi, South Sikkim)
टी गार्डन में तो  धूप खिली थी, पर कंचनजंघा पर बादल  डेरा जमा चुके थे। खैर टी गार्डन में विभिन्न भाव-भंगिमाओं में जम कर तस्वीरें खिंचवाने के बाद हम वहाँ की एक दुकान में चाय का स्वाद लेने पहुँच गए। सोचा टी गार्डन के पास चाय तो अव्वल दर्जे की मिलेगी, पर ये भूल गए कि कुछ कमाल तो चाय बनाने वालों के हाथों का भी होता है। बहरहाल एक कहावत की सत्यता का हमें उस समय बड़ा गहरा एहसास हुआ, वो था -"चिराग तले अँधेरा". खैर मजाक की बात छोड़ें तो सिक्किम की टेमी चाय दुनिया भर में प्रीमियम चाय के रूप में प्रतिष्ठित है। अब समय हो चला था कि हम अगले गंतव्य की ओर चलें, सो हम रावंगला के बुद्धा पार्क , जिसका उद्घाटन कुछ महीने पहले ही तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा जी ने किया था, की ओर प्रस्थान कर गए। 
बुद्धा पार्क , रावंगला , दक्षिण सिक्किम (Tathagat Tsal, Rabong la)
रावंगला स्थित भगवान बुद्ध की 130 फ़ीट ऊँची यह प्रतिमा उनकी सबसे ऊँची प्रतिमाओं में से एक है। बुद्ध जिस आसन पर विराजमान हैं वह दो मंजिल का पूजा स्थल है और इसकी भीतरी दीवारें उनके जीवनकाल की महत्त्वपूर्ण घटनाओं को दर्शाती कलाकृतियों से सुसज्जित हैं।
भगवान बुद्ध और मैं (me in the august company of Lord Buddha)
बुद्धा पार्क में आधा घंटा बिताने के बाद हम नामची के सबसे प्रसिद्ध धार्मिक पर्यटन केंद्र सिद्धेश्वर धाम पहुँचे। इसे चार धाम के नाम से भी जानते हैं।  वो इसलिए कि यहाँ पर चारों धामों और बारहों ज्योतिर्लिंगों की प्रतिकृति (Replica) का निर्माण किया गया है। जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी द्वारा उदघाटित इस धार्मिक पर्यटन केंद्र को भारत सरकार की ओर से वर्ष 2010-11 का सबसे अभिनव और अद्वितीय पर्यटन परियोजना (Most Innovative and Unique Tourism Project) का पुरस्कार प्राप्त हो चुका है।
सिद्धेश्वर धाम, नामची (Siddheshwar Dham, Namchi)
भगवान शिव की 108 फ़ीट ऊंची यह प्रतिमा बारहों ज्योतिर्लिंगों और चारों धामों के मध्य अवस्थित है। पौराणिक कहानियों के अनुसार, देवी सती के यज्ञ कुण्ड में भस्म हो जाने के बाद भगवान शिव संसार से पूरी तरह विरक्त हो चुके थे एवं सिक्किम के जंगलों में शिकारी के रूप में रहने लगे थे। इसीलिये शिव की इस प्रतिमा को किरातेश्वर महादेव (Hunter incarnation of Lord Shiva) के नाम से भी जानते हैं। धाम में यात्री निवास की भी सुविधा है, जहाँ 90 यात्रियों के ठहरने की सुविधा है।


क्यूँ , है न बद्रीनाथ धाम की हूबहू नक़ल ? (Badrinath Dham)


ये लो जी , जगन्नाथ धाम भी देख लो (Replica of Jagannath Dham)


रामेश्वरम धाम भी देख ही लें (Replica of Raameshwaram Dham


जहाँ सब देवतागण अपना अपना डेरा जमा रहे हैं , वहाँ साईं बाबा भला क्यूँ ना हों ! (Sai Baba Temple)
सिद्धेश्वर धाम से थोड़ी ही दूरी पर साईं बाबा का यह भव्य मंदिर भी हमें देखने को मिला और शीश नवाने को हमारे कदम स्वयं ही बढ़ चले। समस्त देवी - देवताओं की पूजा अर्चना के बाद  हम अपने सफर के अंतिम पड़ाव सामदृप्तसे (Samdruptse) यानि बौद्ध गुरु पद्मसम्भव (गुरु पद्मसम्भव को गुरु रिनपोछे के नाम से भी जाना जाता है।) को नमन करने चल पड़े, जिन्हें ना सिर्फ नामची का, बल्कि समूचे सिक्किम का रक्षक और इष्टदेव (Presiding Deity) माना जाता है। सामदृप्तसे पहाड़ी पर स्थित गुरु पद्मसम्भव की 118 फ़ीट ऊंची ये प्रतिमा दुनिया में उनकी सबसे ऊँची प्रतिमा है। ऐसी मान्यता है कि सामदृप्तसे पहाड़ी वास्तव में एक निष्क्रिय ज्वालामुखी है, जिसे शांत रखने केलिए बौद्ध सन्यासी पहाड़ी की चोटी पर जा कर ज्वालामुखी की पूजा करते हैं। गुरु पद्मसम्भव और भगवान शिव की प्रतिमाऐं दो अलग पहाड़ियों पर आमने -सामने स्थित हैं , मानो आपस में गुफ्तगू कर रहे हों।

Statue of Guru Padmasambhav or Rinpoche atop Samdruptse hill, Namchi



गुरु पद्मसम्भव से संक्षिप्त मुलाक़ात के बाद हम वापस गान्तोक की राह चल पड़े , एक बार फिर टेमी टी गार्डन से होते हुए।

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