पिछले पोस्ट में आपने दक्षिण सिक्किम के दो पर्यटन केन्द्रों नामची और रावंगला का यात्रा वृत्तांत पढ़ा। सिक्किम प्रवास की अगली कड़ी में अब आपको लिए चलता हूँ हिमालय की गोद में बसे इस खूबसूरत राज्य के एक और रोमांचक सफर पे - पश्चिम सिक्किम, जो न केवल भरपूर प्राकृतिक सुंदरता से नवाज़ा गया है, वरन प्राचीन सिक्किम की राजशाही का केंद्रबिंदु भी रहा है। प्राचीन सिक्किम की दो राजधानियाँ युकसम एवं राबदान्तसे भी पश्चिम सिक्किम में हैं। पेलिंग, जहाँ से न जाने कितने लोग कंचनजंघा की चोटियों का नजदीक से दीदार करने आते हैं, और पवित्र खेचुपरी झील भी यहीं है। दुनिया के स्वच्छतम गाँवों में से एक दाराप भी तो पश्चिम सिक्किम में ही है।
अमूमन सिक्किम आने वाले पर्यटकों के यात्रा कार्यक्रम में पश्चिम सिक्किम पीछे रह जाता है, क्यूंकि अधिकांश लोग पूर्व और उत्तर सिक्किम के हिमाच्छादित रास्तों, पहाड़ों और झीलों के नयनाभिराम दृश्यों को अधिक पसंद करते हैं। पर घुमक्कड़ी के शौक़ीन और नयी मंजिल और नया रास्ता तलाशते यात्रियों के लिए पश्चिम सिक्किम किसी परिचय का मोहताज नहीं। तो चलिए मेरे साथ एक और सफर पे रूबरू होने सिक्किम के अतीत से और उस नैसर्गिक प्राकृतिक छटा से, जिसे सिक्किम का पर्याय माना जा सकता है।
चूँकि मैं गान्तोक में ही पोस्टेड था, इसलिए सिक्किम के हरेक हिस्से का सफर भी वहीँ से किया है। वैसे भी सिक्किम भ्रमण के लिए अधिकतर पर्यटक गान्तोक को ही बेस बनाते हैं। हालाँकि गेजिंग, जो पश्चिम सिक्किम का मुख्यालय है, गान्तोक और न्यू जलपाईगुड़ी दोनों जगहों से समान दूरी (130 किमी ) पर है। न्यू जलपाईगुड़ी से वाया जोरथांग, गेजिंग का सफर 4 से 5 घंटे में तय किया जा सकता है।
अप्रैल की एक खुशनुमा सुबह, हम आठ लोग राबोंग के रास्ते से पश्चिम सिक्किम के अपने पहले पड़ाव युकसम की ओर चल पड़े। हम लोगों का इरादा पहले दिन युकसम से होते हुए खेचुपरी झील और फिर वहां से पेलिंग पहुँच कर होटल में रुकने का था। पर युकसम के पास पहुंचते ही मूसलाधार बारिश होने लगी और हम सब बारिश का आनंद लेने एक तिब्बती ढाबे के पास रुके। पहाड़ों में बारिश देखना भी एक यादगार लम्हा होता है और गान्तोक प्रवास के दौरान हमने इसका जम के लुत्फ़ उठाया था। मज़ा तो तब दूना हो जाता था, जब खिड़कियों से होते हुए घना कोहरा पूरे कमरे में भर जाता था और ऐसा प्रतीत होता, जैसे बादलों के बीच पहुँच गए हों। युकसम में तेज बरसात के बीच ढाबे में लंच लेना भी एक अच्छा अनुभव था। घंटे भर की बरसात के बाद हम लोगों ने रात युकसम में ही बिताने का फैसला किया। वहां रुकने का एक कारण था कि खेचुपरी झील तक पहुँचने में अँधेरा हो जाता और हम झील की सुंदरता का आनंद लेने से वंचित रह जाते। युकसम में ज्यादा होटल नहीं हैं, पर हमें एक अच्छा सा होम स्टे मिल गया।
युकसम के बारे में ये बता दूँ की इसे सिक्किम की पहली राजधानी होने का श्रेय प्राप्त है जिसे प्रथम चोग्याल शासक फुंत्सोग नामग्याल ने 1642 ई. में स्थापित किया था। 1642 ई. से लगभग 50 साल तक यह चोग्याल राजाओं की राजधानी रहा। युकसम का मतलब है - तीन लामाओं का मिलन स्थल। ये तीन लामा सिक्किम के प्रथम शासक का राज्याभिषेक करवाने आये थे। भूटिया जनजाति के लोग युकसम को पवित्र स्थल मानते हैं।
युकसम की प्रसिद्धि की सिर्फ यही वजह नहीं है, बल्कि दो और भी वजहें हैं जो इसे खास बनाती हैं। पहला ये कि यह मशहूर फिल्म अभिनेता डैनी डेन्जोंगपा की जन्मस्थली है और दूसरा ये कि ट्रेकिंग के शौकीनों के लिए युकसम से बेहतर शायद ही कोई जगह सिक्किम में हो। युकसम में दो ट्रेकिंग रूट हैं- एक युक्सम से जोंगरी जो लगभग 36 किमी लंबा है और दूसरा युकसम से गोइचा-ला जिसकी लम्बाई करीब 40 किमी है। जोंगरी जाने वाला रास्ता कंचनजंघा के बेस कैंप पे जाकर समाप्त होता है। इन दिनों विदेशी पर्यटक खासकर यूरोपियन और अमेरिकी देशों के लोग बहुत अधिक संख्या में युकसम आने लगे हैं।
युकसम में सिक्किम का सबसे पुराना बौद्ध मठ है - दुबदी मठ (Dubdi Monastery) , जिसकी स्थापना 1701 ई. में की गयी थी। युकसम से इस मठ तक जाने के लिए पैदल 2 किमी चलना पड़ता है। कोरोनेशन साइट देखने के बाद हम सब दुबदी मठ की ओर ट्रेकिंग के लिए चल पड़े। शुरुआत तो सबने जोश के साथ की, पर चूँकि कुछ देर पहले ही जोरों की बारिश हुई थी, सो फिसलन भरे रास्ते पे चलना उतना आसान नहीं था। आधा सफर तय करने के बाद हमारे समूह के अधिकांश सदस्य थक कर वापस लौटते दिखाई दे रहे थे, केवल तीन लोग , जिसमें एक मैं भी था, मठ तक पहुँच पाये। मठ देखने से ज्यादा खुशी हमें वह दुर्गम यात्रा पूर्ण होने से हुई थी, क्यूंकि उस समय मठ नवीकरण कार्य (Renovation) हेतु बंद था।:-(
वापस होम स्टे लौटने में हमें ज्यादा वक़्त नहीं लगा और हम सब अपने कमरों में चले गए। होम स्टे की खास बात यह थी कि यह पूरी तरह स्थानीय महिलाओं द्वारा संचालित था और शायद इसीलिए सब कुछ अधिक सुव्यवस्थित लग रहा था। वहां का भोजन भी काफी स्वादिष्ट था। हो भी क्यों ना, सब्जियाँ भी तो उनके खुद के खेतों की थी - ताज़ी और आर्गेनिक।
अगली सुबह आँखें खुलते ही सब सुबह के नजारों को कैमरे में कैद करने निकल पड़े और जो नजारा दिखा वो दिलो-दिमाग को तरोताजा कर देने वाला था।
युकसम से अलविदा कहने का समय हो चला था और हमलोग खेचुपरी झील के लिए रवाना हो गए। हम झील की तरफ बढ़ रहे थे की हमें पास कहीं झरने की तेज होती आवाज़ सुनाई देने लगी और हमारे ड्राइवर ने बताया कि हम कंचनजंघा वाटरफॉल पहुँचने वाले हैं। शीघ्र ही वाटरफॉल हमारे सामने था।
यह मेरा सिक्किम में देखा गया अब तक का सबसे बड़ा वॉटरफॉल था। युकसम से 5 किमी और पेलिंग से 28 किमी दूर यह वाटरफॉल पश्चिम सिक्किम के सबसे बड़े आकर्षणों में से एक है। प्रकृति की ऐसी कृतियों के निकट बिताये कुछ ही पल आपको ऐसे मोहपाश में बाँध लेते हैं कि उनसे मुँह मोड़ने का जी ही नहीं करता, परन्तु सिक्किम जैसे प्रदेश में, जहाँ प्रकृति की अनगिनत अनमोल कृतियाँ बिखरी पड़ी हैं, वहाँ आप किसी एक के प्रेम में बंध नहीं सकते, अन्यथा आप प्राकृतिक सुंदरता के कई अन्य आयामों को निहारने से वंचित रह जायेंगे। कुछ ऐसी ही मनःस्थिति में हमलोग वाटरफॉल को पीछे छोड़ झील की तरफ बढ़ चले। करीब आधे घंटे बाद हम खेचुपरी झील पहुँच चुके थे।
इस झील को बौद्ध और हिन्दू दोनों अपने लिए पवित्र मानते हैं। दरअसल, इस झील से बहुत सी किंवदन्तियाँ जुड़ी हैं। ऐसी मान्यता है कि इस झील का आकार तारा देवी के पैर जैसा है तो कुछ इसे भगवान बुद्ध के पैर की आकृति बताते हैं। वास्तव में काफी ऊंचाई से झील को देखने पर यह पैर के निशान जैसा लगता है। ऐसी भी मान्यता है कि भगवान शिव इस झील के अंदर समाधि में लीन हैं। इस झील से जुड़ा एक रुचिकर तथ्य यह है कि हर ओर से ऊँचे पेड़ों से घिरे होने के बाद भी झील में एक भी पत्ता गिरा हुआ नहीं दीखता। झील की सतह पर पत्ते के गिरते ही पक्षी उसे झील से बाहर निकाल देते हैं। पत्ते तो मुझे भी नहीं दिखे झील में।
झील के दर्शन कर हमलोग पेलिंग से होते हुए सिक्किम की दूसरी राजधानी राबदन्तसे के अवशेष (Rabdentse Ruins) देखने निकल गए।पेलिंग से 3 किमी दूर राबदन्तसे 1670 ई. से 1814 ई. तक सिक्किम की राजधानी रहा।
महल के अवशेषों को देख कर ऐसा लगता है कि इसने कई आक्रान्ताओं के वार झेले हैं और आख़िरकार नेस्त -नाबूद हो चुका है। सच में , चोग्याल राजाओं का यह महल भारत के अन्य राजमहलों की तरह सारी घटनाओं का साक्षी रहा है - सत्ता के लिए संघर्ष, षडयंत्र, धोखा, विदेशी आक्रमण और न जाने क्या क्या ! दो सौतेले भाई-बहन की राजगद्दी की लड़ाई में कभी भुटानियों ने, कभी गोरखों ने और कभी तिब्बतियों ने सिक्किम पर हमला बोला। अन्ततः लगातार नेपाली और भूटानी हमलों के कारण राबदंतसे का विध्वंस हो गया। प्राचीन महल का पूरा परिसर अब भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण के संरक्षण में है। परिसर में तीन चोर्टेन (स्तूप ) हैं ,जहाँ राजपरिवार पूजा किया करता था।
राबदंतसे की एक और खासियत आपको यहाँ आने को प्रेरित कर सकती है, वो है यहाँ के घने जंगलों में पाये जाने वाले पक्षियों की अनेक प्रजातियाँ। वन्यजीव प्रेमियों केलिए यह ख़ुशी की बात हो सकती है कि इस क्षेत्र को पक्षी अभयारण्य (Bird Sanctuary) के रूप में विकसित किया जा रहा है।
राबदंतसे से थोड़ी ही दूर पेमायांग्त्से मोनेस्ट्री है जो सिक्किम के प्राचीनतम मठों में से एक है। बौद्ध धर्म के लोगों के लिए इसका विशेष धार्मिक महत्व है।
सिक्किम के इतिहास के पन्नों को खंगालने के बाद हम सब सिंगशोर ब्रिज देखने गए जो देंताम और उत्तरे गाँवों को जोड़ता है। 220 मीटर ऊँचा और 198 मीटर लंबा यह ब्रिज एशिया का दूसरा सबसे ऊँचा झूला पुल (Suspension Bridge) है। सिक्किम ही नहीं, पूरे भारत में इस तरह का यह इकलौता पुल है।
अब वक़्त हो चला था गान्तोक की ओर रुख करने का, सो हम वापस पेलिंग , गेजिंग और दराप के रास्ते गान्तोक चल पड़े।
अगर आपको मेरा ब्लॉग पसंद है तो आप अपने सुझाव व प्रतिक्रियाएं मेरे ब्लॉगपोस्ट या मेरे फेसबुक ब्लॉग पेज ज़िन्दगी एक सफर है सुहाना पर भी सकते हैं।
चूँकि मैं गान्तोक में ही पोस्टेड था, इसलिए सिक्किम के हरेक हिस्से का सफर भी वहीँ से किया है। वैसे भी सिक्किम भ्रमण के लिए अधिकतर पर्यटक गान्तोक को ही बेस बनाते हैं। हालाँकि गेजिंग, जो पश्चिम सिक्किम का मुख्यालय है, गान्तोक और न्यू जलपाईगुड़ी दोनों जगहों से समान दूरी (130 किमी ) पर है। न्यू जलपाईगुड़ी से वाया जोरथांग, गेजिंग का सफर 4 से 5 घंटे में तय किया जा सकता है।
अप्रैल की एक खुशनुमा सुबह, हम आठ लोग राबोंग के रास्ते से पश्चिम सिक्किम के अपने पहले पड़ाव युकसम की ओर चल पड़े। हम लोगों का इरादा पहले दिन युकसम से होते हुए खेचुपरी झील और फिर वहां से पेलिंग पहुँच कर होटल में रुकने का था। पर युकसम के पास पहुंचते ही मूसलाधार बारिश होने लगी और हम सब बारिश का आनंद लेने एक तिब्बती ढाबे के पास रुके। पहाड़ों में बारिश देखना भी एक यादगार लम्हा होता है और गान्तोक प्रवास के दौरान हमने इसका जम के लुत्फ़ उठाया था। मज़ा तो तब दूना हो जाता था, जब खिड़कियों से होते हुए घना कोहरा पूरे कमरे में भर जाता था और ऐसा प्रतीत होता, जैसे बादलों के बीच पहुँच गए हों। युकसम में तेज बरसात के बीच ढाबे में लंच लेना भी एक अच्छा अनुभव था। घंटे भर की बरसात के बाद हम लोगों ने रात युकसम में ही बिताने का फैसला किया। वहां रुकने का एक कारण था कि खेचुपरी झील तक पहुँचने में अँधेरा हो जाता और हम झील की सुंदरता का आनंद लेने से वंचित रह जाते। युकसम में ज्यादा होटल नहीं हैं, पर हमें एक अच्छा सा होम स्टे मिल गया।
युकसम के बारे में ये बता दूँ की इसे सिक्किम की पहली राजधानी होने का श्रेय प्राप्त है जिसे प्रथम चोग्याल शासक फुंत्सोग नामग्याल ने 1642 ई. में स्थापित किया था। 1642 ई. से लगभग 50 साल तक यह चोग्याल राजाओं की राजधानी रहा। युकसम का मतलब है - तीन लामाओं का मिलन स्थल। ये तीन लामा सिक्किम के प्रथम शासक का राज्याभिषेक करवाने आये थे। भूटिया जनजाति के लोग युकसम को पवित्र स्थल मानते हैं।
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युकसम में चोग्याल राजा का राज्याभिषेक स्थल (Norbugang Coronation Site at Yuksom) |
युकसम में सिक्किम का सबसे पुराना बौद्ध मठ है - दुबदी मठ (Dubdi Monastery) , जिसकी स्थापना 1701 ई. में की गयी थी। युकसम से इस मठ तक जाने के लिए पैदल 2 किमी चलना पड़ता है। कोरोनेशन साइट देखने के बाद हम सब दुबदी मठ की ओर ट्रेकिंग के लिए चल पड़े। शुरुआत तो सबने जोश के साथ की, पर चूँकि कुछ देर पहले ही जोरों की बारिश हुई थी, सो फिसलन भरे रास्ते पे चलना उतना आसान नहीं था। आधा सफर तय करने के बाद हमारे समूह के अधिकांश सदस्य थक कर वापस लौटते दिखाई दे रहे थे, केवल तीन लोग , जिसमें एक मैं भी था, मठ तक पहुँच पाये। मठ देखने से ज्यादा खुशी हमें वह दुर्गम यात्रा पूर्ण होने से हुई थी, क्यूंकि उस समय मठ नवीकरण कार्य (Renovation) हेतु बंद था।:-(
वापस होम स्टे लौटने में हमें ज्यादा वक़्त नहीं लगा और हम सब अपने कमरों में चले गए। होम स्टे की खास बात यह थी कि यह पूरी तरह स्थानीय महिलाओं द्वारा संचालित था और शायद इसीलिए सब कुछ अधिक सुव्यवस्थित लग रहा था। वहां का भोजन भी काफी स्वादिष्ट था। हो भी क्यों ना, सब्जियाँ भी तो उनके खुद के खेतों की थी - ताज़ी और आर्गेनिक।
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लिंगी होमस्टे, युकसम (Lingee Homestay at Yuksom) |
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युकसम में एक शानदार सुबह (One fine morning in Yuksom) |
युकसम से अलविदा कहने का समय हो चला था और हमलोग खेचुपरी झील के लिए रवाना हो गए। हम झील की तरफ बढ़ रहे थे की हमें पास कहीं झरने की तेज होती आवाज़ सुनाई देने लगी और हमारे ड्राइवर ने बताया कि हम कंचनजंघा वाटरफॉल पहुँचने वाले हैं। शीघ्र ही वाटरफॉल हमारे सामने था।
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कंचनजंघा वाटरफॉल (Khangchendzonga Waterfall) |
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खेचुपरी झील (Khecheopalri Lake) |
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खेचुपरी झील में तैरती मछलियाँ (Fishes swimming in Khecheopalri Lake) |
झील के दर्शन कर हमलोग पेलिंग से होते हुए सिक्किम की दूसरी राजधानी राबदन्तसे के अवशेष (Rabdentse Ruins) देखने निकल गए।पेलिंग से 3 किमी दूर राबदन्तसे 1670 ई. से 1814 ई. तक सिक्किम की राजधानी रहा।
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राबदंतसे महल के अवशेष (Rabdentse Ruins) |
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तीन स्तूप (Three Chorten at Rabdentse) |
महल के अवशेषों को देख कर ऐसा लगता है कि इसने कई आक्रान्ताओं के वार झेले हैं और आख़िरकार नेस्त -नाबूद हो चुका है। सच में , चोग्याल राजाओं का यह महल भारत के अन्य राजमहलों की तरह सारी घटनाओं का साक्षी रहा है - सत्ता के लिए संघर्ष, षडयंत्र, धोखा, विदेशी आक्रमण और न जाने क्या क्या ! दो सौतेले भाई-बहन की राजगद्दी की लड़ाई में कभी भुटानियों ने, कभी गोरखों ने और कभी तिब्बतियों ने सिक्किम पर हमला बोला। अन्ततः लगातार नेपाली और भूटानी हमलों के कारण राबदंतसे का विध्वंस हो गया। प्राचीन महल का पूरा परिसर अब भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण के संरक्षण में है। परिसर में तीन चोर्टेन (स्तूप ) हैं ,जहाँ राजपरिवार पूजा किया करता था।
राबदंतसे की एक और खासियत आपको यहाँ आने को प्रेरित कर सकती है, वो है यहाँ के घने जंगलों में पाये जाने वाले पक्षियों की अनेक प्रजातियाँ। वन्यजीव प्रेमियों केलिए यह ख़ुशी की बात हो सकती है कि इस क्षेत्र को पक्षी अभयारण्य (Bird Sanctuary) के रूप में विकसित किया जा रहा है।
राबदंतसे से थोड़ी ही दूर पेमायांग्त्से मोनेस्ट्री है जो सिक्किम के प्राचीनतम मठों में से एक है। बौद्ध धर्म के लोगों के लिए इसका विशेष धार्मिक महत्व है।
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पेमायांग्त्से मठ (Pemayangtse Monastery) |
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सिंगशोर ब्रिज (Singshore Bridge) |
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